अर्थ ग्लोबल पॉलिसी संगठन के सर्वे के अनुसार 53% भारतीय अस्पताल में भर्ती होने का ख़र्च अपनी जेब से उठाते हैंअर्थ ग्लोबल पॉलिसी संगठन के सर्वे के अनुसार 53% भारतीय अस्पताल में भर्ती होने का ख़र्च अपनी जेब से उठाते हैं (फोटो: आजतक)

अर्थ ग्लोबल पॉलिसी संगठन के सर्वे, नई दिल्ली: हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और उनकी लागत पर एक चिंताजनक तस्वीर पेश की है। सर्वे से यह बात सामने आई है कि, भारत के लगभग 53% नागरिकों को अस्पताल में भर्ती होने के दौरान होने वाले खर्च का भुगतान अपनी जेब से करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर भारी बोझ पड़ता है।

दुनियां की सबसे प्रतिष्ठित संस्था, अर्थ ग्लोबल पॉलिसी संगठन के सेंटर फॉर रैपिड इनसाइट्स (CRI) द्वारा भारत में किए गए इस सर्वेक्षण में 421 लोकसभा क्षेत्रों के 6,755 लोगों के जवाब शामिल थे। सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि जिन लोगों के पास निजी वाहन नहीं थे, उन्हें अस्पताल के खर्चों का भुगतान खुद करना पड़ा, जबकि वाहन मालिकों के लिए स्थिति थोड़ी बेहतर रही।

इस सर्वेक्षण के अनुसार, 53% उत्तरदाताओं ने बताया कि, अस्पताल में भर्ती होने के खर्च का भुगतान उन्होनें अपनी जेब से किया। वहीं, केवल 29% लोगों ने कहा कि, उन्हे सरकारी योजनाओं का लाभ मिला। निजी बीमा और नियोक्ता द्वारा कराए गए बीमा पर क्रमशः 10% और 9% लोग निर्भर थे।

सर्वेक्षण से यह भी सामने आया कि, जिन उत्तरदाताओं के पास कोई वाहन नहीं था, उनमें से 60% ने अपनी जेब से खर्च किया, जबकि दोपहिया वाहन मालिकों के लिए यह आंकड़ा 48% और चार पहिया वाहन मालिकों के लिए 40% रहा।

आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की सीमाओं पर CRI के निदेशक नीलांजन सरकार ने चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि, ऐसी योजनाएं निवारक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश को प्रोत्साहित नहीं करती हैं, जिससे जरूरतमंद गरीब तबके सबसे कम संरक्षित रहते हैं।

नीलांजन सरकार का मानना है कि, आयुष्मान भारत योजना केवल अस्पताल में भर्ती होने तक ही सीमित है, जिससे ओपीडी सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाता। परिणामस्वरूप, उन मरीजों को मदद नहीं मिलती, जिन्हें अस्पताल में रात भर भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती।

नीलांजन सरकार ने सुझाव दिया कि इस समस्या का समाधान तभी संभव है, जब नागरिकों को निजी या नियोक्ता द्वारा कराए गए बीमा का सहारा मिले। तभी वे अस्पताल में भर्ती होने पर होने वाले खर्चों का बोझ उठाने से बच सकते हैं।

नीलांजन सरकार ने आगे कहा कि, केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना के तहत हर साल प्रति पात्र परिवार को पंजीकृत अस्पतालों में 5 लाख रुपये तक का इलाज मिल सकता है, लेकिन इसे और अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने की जरूरत है ताकि स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की पहुंच सुनिश्चित हो सके।

यह सर्वेक्षण भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक स्थिति को उजागर करता है और इस ओर इशारा करता है कि अभी भी एक बड़े हिस्से को आर्थिक रूप से सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत है।

Source: Thewirehindi.com

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