shivaji maharaj aur afzal khan शिवाजी महाराज और अफजल खान शिवाजी महाराज अफजल खान का वध करने से पहले गले मिलते हुए

बाघ नख, महाराष्ट्र: बीती 17 जुलाई की सुबह ही महाराष्ट्र का अनमोल खजाना कहा जाने वाला छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘बाघ नख’ भारत को मिल गया है। यह बाघ नख 17 जुलाई की सुबह लंदन से सीधे मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचा। आपको बता दें कि, मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस बाघ नख को भारत वापस लाने के लिए कई बार बाते की गई, लेकीन प्रयास नही किए गए थे। लेकीन पिछले साल महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने बाघ नख को वापस लाने के लिए कोशिशें शुरू की थीं। जिसके फल स्वरूप आज भारत को छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘बाघ नख’ ब्रिटेन से मिल चुका है।

इतिहास बताता है कि, 1659 के युद्ध में छत्रपति शिवाजी महाराज ने बाघ नख के एक प्रहार से अफजल खान का काम तमाम किया था और अपने राज्य की रक्षा की थी। महाराष्ट्र में यह किस्सा काफी रोचक है और इसे घर घर सुनाया जाता हैं।

मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक इन बाघ नखों को शुक्रवार को सातारा में CM, दोनों डिप्टी CM और शिवाजी के वंशज सांसद उदयन राजे और विधायक शिवेंद्र राजे के उपस्थिति में महाराष्ट्र सरकार को सौंपा जाएगा और इस बाघ नख को सतारा के म्यूजियम में रखा जाएगा, ताकि आम लोग इसे देख सकें और शिवाजी महाराज के पराक्रम को महसूस कर सकें।

वैसे छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन देश प्रेम की कहानियों से भरा हुआ है, लेकिन उनकी शौर्य गाथाओं में बाघ नख का जिक्र खूब होता है. बाघ नख नाम के हथियार ने ही शिवाजी महाराज की जान बच पाई थी। इतिहास बताता है कि, उन्होंने 1659 में इसी बाघ नख से अफजल खान को मार दिया था। बहुत ही शानदार है यह किस्सा आइए जानते हैं, आपको बता दें कि, इस किस्से का वर्णन आपको कई सारी किताबों में मिलेगा। लेकीन हम आपको उस किताब में दिए इस किस्से को बताएंगे जो कई साल पहले 4 थी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सरकार ने बनाई थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज के बाघ नख का इतिहास

किताब में मिले जानकारी के आधार पर कहा जाता है कि, शिवाजी महाराज के पराक्रम से बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत काफी परेशान थी। सल्तनत के किसी भी सेनापति में दम नहीं था, जो शिवाजी महाराज को मार सके या उन्हे पकड़ सकें। छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत का जीना हराम कर दिया था। आदिलशाह परेशान हो गया था। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि, कैसे शिवाजी महाराज का बंदोबस्त किया जाए।

शिवाजी महाराज को मारने के लिए और अपने राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक दीन उसने दरबार बुलाया। जहां पर उसने सभी सेनापतियो को प्रस्तुत रहने का आदेश दीया।

अफजल खान ने लिया शिवाजी महाराज को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का बेड़ा

सुलतान के आदेश पर उसका दरबार लगा जहा उसके सेना के एक से बढ़कर एक सेनापति मौजुद हुए। चर्चा का विषय शिवाजी महाराज ही था कि, कोन शिवाजी महाराज को जिंदा या मुर्दा मार कर लाएगा। लेकिन एक भी सरदार बोलने को तयार नही हुआ क्युकी सभी ने शिवाजी महाराज के पराक्रम को देखा हुआ था। आदिलशाह के इस सवाल पर सभी सेनापतियों ने अपने सर नीचे झुकाए। इतने में एक सेनापति आगे आया और उसने सुलतान को कहा कि, मै शिवाजी महाराज को जिंदा पकड़कर लाऊंगा। जैसे ही उसने ऐसा कहा पूरा दरबार उस सेनापति को देखने लगा।

आपको बता दें कि, जिसने शिवाजी महाराज को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का बेड़ा जिस सेनापति ने उठाया था उस सेनापति का नाम था अफजल खान।

अफजल खान के बारे में कहा जाता है कि, यह बिलकुल खली जैसे शरीर वाला सेनापति था। जो किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाने में माहिर था। जब इसने शिवाजी महाराज को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का बेड़ा उठाया तो पूरा दरबार खुश हुआ क्युकी सभी को अफजल खान पर पूरा भरोसा था। सभी को लगने लगा था कि, अब शिवाजी महाराज जरुर मारा जाएगा।

इसके बाद दरबार सम्पन्न हुआ और अफजल खान अपने साथ एक बडी फौज और गोला बारूद लेकर महाराष्ट्र की ओर निकल पड़ा। कहा जाता है कि, जब शिवाजी महाराज का राज्य बना नही था तब वह इस स्थान का 12 साल तक सुभेदार था। इसलिए उसे महाराष्ट्र के बारे में अच्छी खासी जानकारी थी।

afzal khan अफजल खान को देखकर भी नही डगमगाए शिवाजी महाराज

जब अफजल खान महाराष्ट्र की ओर निकला इसकी गुप्त खबर शिवाजी महाराज को लगी। उस समय शिवाजी महाराज रायगढ़ किले पर थे। लेकिन वे नही डगमगाए, उन्होनें सोचा कि, अफजल खान एक धोखेबाज सेनापति है साथ में उसके पास एक प्रचंड बड़ी फौज और गोला बारूद है। इसके मुकाबले अपना राज्य छोटा है और अपनी फौज भी छोटी है। आमने सामने की लड़ाई में वे नही टिक पाएंगे। इसलिए शिवाजी महाराज ने अंत में सोचा कि, यदी अफजल खान को कुचलना हैं तो इसे ताकत से नही दिमाग से ही कुचला जा सकता हैं।

शिवाजी महाराज और अफजल खान 
ये है वह किला जहा पर अफजल खान का वध करने से पहले शिवाजी महाराज रुके थे (प्रतापगढ किला)

मां का आशीर्वाद ले कर प्रतापगढ़ किले पर गए शिवाजी महाराज

जैसे ही शिवाजी महाराज प्रतापगढ़ किले पर गए यह पता चलते ही अफजल खान काफी गुस्सा हुआ। क्युकी वह जानता था कि, प्रतापगढ़ किले हमला करना इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि यह किला में ऊंची पहाड़ियों में बना हुआ है और आसपास काफी घना जंगल है। जिनमें खूंखार जानवर भी है। इसके अलावा वहा तक जाने के लिए फौज को रास्ता भी नही है।

शिवाजी महाराज को प्रतापगढ़ किले से बाहर निकालने के लिए जनता पर किए अत्याचार

शिवाजी महाराज को प्रतापगढ़ किले से बाहर निकालने के लिए खान ने चालें खेलना शुरू कर दिया। उसने तुलजापुर और पंढरपुर के तीर्थस्थलों को परेशान किया । जनता को बहुत यातनाएं दी। उसे लगता था कि, शायद यह सुनकर शिवाजी प्रतापगढ़ छोड़कर बाहर आ जायेगा। लेकिन शिवाजी महाराज ने उसकी चाल को पहचाना और प्रतापगढ़ किला छोड़ा ही नहीं। इसके बाद खाना ने दूसरी चाल चली। उसने स्नेह की आड़ में शिवराय को संदेश भेजा, ‘तुम मेरे बेटे के समान हो। आओ मुझसे मिलो। हमारे किले हमें वापस दे दो। मैं तुम्हें आदिलशाह से सरदारी प्रदान करता हूं।’

शिवाजी महाराज ने उसकी चाल उस पर ही चलाई

शिवाजी महाराज ने तुरंत पहचान लिया कि अफजल खान उनके साथ कपटपूर्ण चाल खेल रहा है। वे और सतर्क हुए। उन्होंने ख़ाना को ही प्रतापगढ़ किले के नीचे बुलाने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होनें खान को संदेश भेजा, ‘खान साहब, मैंने आपके किले आपको वापस देने के लिये तयार हु। मैंने आपके किले लिए, मैं दोषी हूँ। क्षमा चाहता हूँ हमें प्रतापगढ़ के अंतर्गत मिलना चाहिए। मुझे वहां आने से डर लगता है.’

शिवाजी महाराज का यह संदेश सुनकर अफ़ज़ल खान मुस्कुराया। ‘बहुत खूब! बहुत खूब!’ उसने अपनी दाढ़ी घुमाते हुए कहा। उसने सोचा, इस अफजल खान के सामने शिवाजी की क्या बिसात! यह कायर मेरे साथ क्या युद्ध खेल सकता है! चल बैठक में उसे कुचल डालेंगे. इतना ही! खान ने प्रतापगढ़ के अंतर्गत शिवराया से मिलने पर सहमति व्यक्त की।

बैठक का निर्णय लिया गया

बैठक का स्थान प्रतापगड़ किले के नीचे मचान पर तय किया गया  दिन तय हुआ, समय तय हुआ।

तय हुआ कि मुलाकात के दौरान दोनों अपने साथ एक-एक नौकर लायें और अपने दस अंगरक्षकों को दूर एक निर्धारित स्थान पर रखें। किताब के मुताबिक महाराज ने अच्छा भोजन बनाया। यात्रा के लिए एक अच्छा शामियाना लगाया गया था। ताकी कोई संदेह न हो।

शिवाजी महाराज बहुत सतर्क थे उन्होनें अपनी सेना को विभिन्न टुकड़ियों में बाँट दिया था। उन्हें निर्देश दिए थे कि, जंगल में कहाँ छिपना है और क्या करना है। कड़े इंतजाम किए गए। कहा जाता है कि, उनके कुछ सलाहकारों ने उनसे यह भी कहा था कि खान एक पाखंडी है इसलिए उनको उससे नही मिलना चाहिए, लेकिन शिवाजी महाराज ने खान से मिलने का फैसला किया।

shivaji maharaj aur afzal khan शिवाजी महाराज और अफजल खान
शिवाजी महाराज इन चीजों को साथ लेकर गए थे अफजल खान से मिलने

मिलने की तयारी

मिलने का दिन आ गया। प्रातःकाल या सुबह में शिवाजी महाराज ने मां भवानीदेवी के दर्शन किये। थोड़ी देर बाद वे मिलने के लिए कपड़े पहनने लगे। पैर ढके हुए थे। उपर उन्होनें शरीर कवच पहना, इसके बाद इन्होंने अपने सिर पर जिरेटोप पहनता था। बाएं हाथ की उंगलियों में उन्होनें बाघ नख पहने। बिछवा उसी हाथ की आस्तीन में उन्होनें छिपा लिया। बेल्ट भी साथ ले गए। इस प्रकार शिवाजी महाराज खाना की यात्रा के लिए तैयार हुए।

जब शिवाजी महाराज बाहर निकले तो उन्होनें अपने सरदारों को कहा कि, “गड़ियों, अपना काम ठीक से करो। मां भवानी हमें जरुर सफलता देगी, लेकिन अगर हमारे साथ कुछ बुरा होता है, तो धैर्य मत खोना। संभाजी राजा को सिंहासन पर बिठाओ। मासाहेब के आदेशों का पालन करो। स्वराज बढ़ाओ। बनाओ।” जनता को खुश रखो। हम जा रहे हैं!” इतना कहकर शिवाजी महाराज अफ़ज़ल खान से मिलने के लिए निकल पड़े। उनके साथ उनके सबसे वफादार साथी पंताजी गोपीनाथ और जीवाजी महला, संभाजी कावजी, येसाजी कंक, कृष्णाजी गायकवाड़, सिद्दी इब्राहिम आदि दस अंगरक्षक भी थे।

शिवाजी महाराज शामियाने में पहुंचने से पहले ही अफ़ज़ल खान शामियाने में आकर बैठ गया था। और शिवाजी महाराज का इंतजार कर रहा था। उसके बगल में उसका हथियारबंद सिपाही खड़ा था जिसका नाम बड़ा सैयद था। वह पतुट्टा चलाने में बहुत अच्छा था। शिवराय छतरी के दरवाजे के पास आये और वही रुक गए। खान ने महाराज के वकील से पूछा, “शिवाजी राजे अंदर क्यों नहीं आ रहे हैं?”

तब वकील ने कहा, “वे बड़ा सैय्यद से डरते हैं। उसे ले जाओ।” इसके बाद बड़ा सैय्यद वहा से चला गया। उसके वहा से जाते ही शिवाजी महाराज अन्दर गए। जिन्हे खान ने उठकर कहा, “आओ, राजे, आओ, हमसे मिलो।”

shivaji maharaj aur afzal khan शिवाजी महाराज और अफजल खान 
शिवाजी महाराज अफजल खान का वध करने से पहले गले मिलते हुए

शिवाजी महाराज और अफजल खान की मुठभेड़

शिवाजी महाराज सतर्क होकर आगे बढ़े। afzal khan अफजल खान ने शिवाजी महाराज को आलिंगन दिया। धिप्पाड खान के सामने शिवाजी ठेंगने थे। शिवाजी का सिर खान की छाती पर आ गया। उसी समय, खान ने शिवाजी को मारने के लिए उनकी गर्दन अपने बाएं बगल में दबाई और दूसरे हाथ से शिवाजी की कमर में कटार से वार किया। शिवाजी की अंगरखा फट गई, लेकिन अंगरखे के नीचे बख्तरबंद होने की वजह से वे बच गए। शिवाजी ने खान के इरादे को समझ लिया। इसके बाद बेहद फुर्ती से उन्होंने खान के पेट पर बाघ नख से हमला किया। बाएं हाथ की आस्तीन में छिपाए हुए बिचवे को दाहिने हाथ से निकालकर उन्होंने उसे खान के पेट में गहरा घुसा दिया। खान की आंतें बाहर निकल आईं और वह वही ढेर हो गया।

अफजल खान को ढेर होता देख उसका वकील कृष्णाजी भास्कर आगे आया और उसने शिवाजी महाराज पर तलवार से वार किया, लेकिन शिवाजी ने पट्टे की एक ही वार में उसे मार गिराया। यह खनाखनी सुनकर बडा सय्यद जो शामियाने से बाहर गया था। वह शामियाने में घुस आया। वह शिवाजी पर हमला करने ही वाला था कि जिवाजी महाला दौड़ते हुए बिच में आ गए और उन्होंने बडा सय्यद के वार को अपने ऊपर लिया, जिवाजी महाला ने एक ही वार में बडा सय्यद को वहीं मार गिराया। “होता जीवा म्हणून वाचला शिवा,” ऐसी कहावत आगे चलकर प्रचलित हो गई। इस संघर्ष में संभाजी कावजी ने भी बड़ा पराक्रम दिखाया।

भ्रष्टाचार का नया उदाहरण: छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने पर मोदी-फडणवीस जी को आड़े हाथों लेना जरूरी!

afzal khan अफजल खान की सेना की हार

इसके बाद विजयी शिवाजी किले पर लौट गए। वहा जंगल में छिपकर शिवाजी महाराज की सेना संकेत का इंतजार कर रही थी। उन्होने किले पर से संकेत की तोप चलाई। जो शिवाजी की सेना संकेत की प्रतीक्षा कर रही थी। तोप की आवाज सुनते ही झाड़ियों में छुपी शिवाजी की सेना खान की सेना पर टूट पड़ी। खान की सेना असावधान थी। उन्हें भागने का रास्ता भी नहीं मिला। जिसके चलते मराठों ने खान की सेना का बड़ी संख्या में कत्लेआम कर दिया।

जिस अफजल खान को छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘वाघनख’ से चीर दिया था वह कौन था? आखिर वाघनख कैसे पहुंचा लंदन

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