adv Prakash Ambedkar: प्रकाश आंबेडकर, जो कि महाराष्ट्र में वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) के प्रमुख और भारत के संविधान निर्माता डॉ. बी.आर. आंबेडकर के पोते हैं, ने हाल ही में अनुसूचित जातियों के आरक्षण को लेकर एक गंभीर बयान दिया है। उन्होंने #SupremeCourt के एक हालिया फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसे अनुसूचित जातियों के लिए एक गंभीर खतरा बताया है। अपने ट्वीट के माध्यम से उन्होंने वाल्मिकियों, मडिगाओं, मजहबियों, रामगढ़ियों, रामदासियों, मातंग और अन्य सभी अनुसूचित जातियों से अपील की है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान से पढ़ें और समझें। उनका कहना है कि इस फैसले का वास्तविक उद्देश्य अनुसूचित जातियों के आरक्षण को धीरे-धीरे समाप्त करना हो सकता है।
adv Prakash Ambedkar ने अपने ट्वीट (x) में क्या कहा
प्रकाश आंबेडकर ने ट्वीट में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है, बल्कि अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) के प्रावधान को भी मान्यता देता है। उन्होंने इस फैसले की व्याख्या करते हुए बताया कि इसका अर्थ यह है कि जो दलित व्यक्ति या परिवार शिक्षित और संपन्न हो गया है, वह अब आरक्षण का लाभ नहीं ले सकेगा। इसका मतलब यह है कि अगर एक दलित व्यक्ति ने शिक्षा और नौकरी पाने के लिए वर्षों तक संघर्ष किया और वह अब एक अच्छी स्थिति में है, तो उसके परिवार को आगे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इससे उन परिवारों को आरक्षण से बाहर कर दिया जाएगा, जिन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष के बल पर शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कुछ हद तक सफलता पाई है।
आंबेडकर ने अपने बयान में चिंता जताई कि इस फैसले का असर खासकर उन दलित परिवारों पर पड़ेगा, जिन्होंने अब तक आरक्षण का लाभ नहीं उठाया है। ऐसे परिवारों को शिक्षा और रोजगार में अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है, लेकिन वे क्रीमी लेयर में आ जाएंगे और आरक्षण से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि जो परिवार अब तक आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाया है, वह परिवार कम से कम 15 साल की शिक्षा और 2 साल की नौकरी पाने में लगाता है। लेकिन कम से कम 15-17 साल तक आरक्षण की नीति निष्क्रिय रहेगी, क्योंकि तब तक आरक्षण का लाभ न लेने वाले परिवारों को शिक्षा और नौकरी पाने में 15-17 साल निवेश करना पड़ेगा और नौकरी वाले परिवार आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे।
आंबेडकर ने यह भी कहा कि इस फैसले का दीर्घकालिक प्रभाव शिक्षा और पब्लिक सेक्टर में अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधित्व पर पड़ेगा। अगर अनुसूचित जातियों के क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर किया जाता है, तो शिक्षा और रोजगार में उनके लिए आरक्षण का कोई उपयोग नहीं होगा। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इससे अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा, और वे शिक्षा और सरकारी सेवाओं में पूरी तरह से हाशिए पर चले जाएंगे।
adv Prakash Ambedkar का ट्वीट (x)
मैं वाल्मिकियों, मदीगाओं, मजहबियों, रामगढियाओं, रामदासियाओं, मातंग और सभी से अपील करता हूं कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ठीक से पढ़ें।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है बल्कि अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर के…
— Prakash Ambedkar (@Prksh_Ambedkar) August 20, 2024
इसके साथ ही, आंबेडकर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कुछ आपत्तिजनक बातें भी बताई हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई ने अपने फैसले में कई मौकों पर ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल किया है, जिसे आज की संवेदनशीलता और सामाजिक जागरूकता के दृष्टिकोण से सही नहीं माना जाता। आंबेडकर ने यह भी कहा कि यह शब्द अनुसूचित जातियों के लिए अपमानजनक है और इसे छोड़ दिया जाना चाहिए था।
प्रकाश आंबेडकर का ट्वीट: सरकार को घेरते हुए लाड़का भाऊ योजना पर उठाए सवाल
आंबेडकर ने अपने ट्वीट के माध्यम से अनुसूचित जातियों से अपील की है कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे की रणनीति को समझें और इस पर विचार करें। उन्होंने कहा कि इस फैसले का उद्देश्य अनुसूचित जातियों के आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म करना है, और इसे समझना और इसके खिलाफ आवाज उठाना अत्यंत आवश्यक है। आंबेडकर का यह बयान निश्चित रूप से सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में बड़ी चर्चा का विषय बन सकता है, क्योंकि यह सीधे-सीधे अनुसूचित जातियों के अधिकारों और उनके आरक्षण को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देता है।